यही तो दुःख है तारीख पक्की हो जाती तो पचासों इंतजाम भी तो करने होते हैं यार, उन सब में टाइम लगता है | शहरों में तो सभी कुछ इंतजाम करना पड़ता है, गांवों का जैसा जो क्या है |
तौ्ई त् दुख छ् तारीख पक्की है जा्निं तो फिर पचासों इंतजाम लै क् करण हुंनिं यार, उनन में टैम ला्गं। शहरन में त् सबै इंतजाम करण पड़ं, गौंना्क जस ज् के् छ्।
अरे आजकल तो गांठ में नोट होने चाहिये यार इंतजाम तो मुंह से ही हो जाता है सब | बैंक्विट हाल वाले से कहो बस सब तैयार, आदमी को फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं होती | कैसा?
चाहे कुछ भी हो दौड़ भाग तो करनी ही पड़ती है | कार्ड छपाने होते हैं, लाइट का इंतजाम भी करना होता है, घर का सौदापत्ता भी खरीदना पड़ता है, बैंक्विट हाल वालों के रेट तो आसमान में हैं | मेरे मन में तो घर से ही करने का विचार आ रहा है यार, तू बता कैसा ठीक रहेगा |
चाहे के लै हो दौड़भाग त करणैं पणंऽ। कार्ड छपूंण हुनिं,लाइटौ्क इंतजाम लै् करण हूं,घरौ्क सौदपत्त लै् खरिदणै पणं, बैंकट हौल वा्लना्ंक त् रेट आसमान में छन। मेर मन में त् घरै बटि करणौ्ंक विचार ऊंणौ यार,तु बता कस ठीक रौल।
तेरी बात सुन कर मेरे दिमाग में एक आइडिया जो आगया, बताऊँ?
ते्रि बात सुंणिं बेर मेर दिमाग में एक आ्इडिया जै् ऐ्गो, बतूं ?
बता बता क्या आइडिया आया तेरी दरिद्री खोपड़ी में |
बता बता के् आ्इडिया आ ते्रि द्लिदिरि खो्पड़ि में।
क्यों रे मेरी खोपड़ी को दरिद्री कह रहा है साले, बीस साल डायरेक्टर रहा सरकारी विभाग में | क्या समझता है मुझे ? पचासों नयी नयी योजनायें मैंने विभाग में चलायीं जिनसे विभाग को फायदा हुआ |
किलै रे् मेरि खा्पड़ि क्ं द्लिदिरि कूंणौं छै सा्वा, बीस साल डायरेक्टर रयूं सरका्रि विभाग में। के् समझ छै मकं ? पचासन नई नई योजना मैंल विभाग में चलै्ई जनल विभाग क्ं फैद भौ।
अरे दरिद्री ही हुई जब उसमें ये आइडिया नहीं आ रहा कि यार चल फिर घर नजदीक ही है, घर चल भाभी के हाथ की एक घूंट चाय पी आयेगा | कहां रखेगा इतने पैसों को बचा कर, शर्म कर |
अरे द्लिदिरि भै् जब उमें यो् आ्इडिया नि उणैं कि यार हिट पै् घर नजिकै छ्, घर हिट बोजि हाथौ्क एक घुटुक चहा पि आलै। का्ं धरलै ततु डबलनकं, शरम कर।
अरे तेरे लिये घर के दरवाजे बंद जो क्या कर रखे हैं रे | जा, जिस समय मन आती है तेरे चाय पीने की | मकान मालकिन तेरी भाभी लगती ही है, वो तो तेरे आने में खुश जो हो जाती है बाकी | अब कह के तो नहीं ले जाता हूँ तुझे अपने साथ घर |
मत ले जाना, मेरे पास पैर नहीं है क्या | मैं खुद ही चला जाऊँगा और जाऊँगा क्या जा रहा हूँ| तू आते रहना मेरे पीछे पीछे |
झन लिजैयै,म्या्र पास खुट न्हांतनां के्। मैं खुदै न्है जूंन और जूंन के् जांणयूं। तू ऊंनै रयै म्या्र पिछा्ड़ि पिछा्ड़ि।
चल फिर आगे आगे | अरे रुक यार रुक, मैं तो भूल ही गया तेरी भाभी ने एक पैकेट चाय का मंगवा रखा था, मुझे याद ही नहीं है | जा तो जरा सामने हरीश की दुकान से ले आ यार एक पैकेट, ले पैसे ले जा सौ रुपये | मैं यहीं खड़ा हूँ |
हिट पै अघिल अघिल। अरे रुक यार रुक, मैं त् भुलि गयूं ते्रि बोजिल एक पैकेट चहाक मंगवै रा्ख छी, मकं यादै न्हां। जा ध्ं जरा सामणिं हरियै्कि दुकान बै लिया ध्ं एक पैकेट, ले डबल लै लिजा सौ रुपैं। मैं इल्लैई ठा्ड़ छुं।